2024 चुनाव : नरेंद्र मोदी बनाम कौन?

मनोरंजन भारती

पांच राज्यों के विधानसभा नतीजों के बाद अब यह सवाल उठने लगा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के लिए विपक्ष का चेहरा कौन हो सकता है. इन विधानसभा चुनावों के पहले से ही इसकी कोशिशें हो रही हैं और ममता बनर्जी इसकी धुरी बनी हुई हैं. इस सिलसले में वे दिल्ली आईं और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से भी मुलाकात की. फिर वे मुंबई गई वहां शरद पवार से लेकर उद्धव ठाकरे से मिलीं और एक विपक्षी मोर्चा बनाने की बात कही गई. मगर इस मोर्चे में कांग्रेस होगी कि नहीं, इस पर अभी बात होनी है.शिवसेना और एनसीपी जैसे दलों का मानना है कि कांग्रेस के बिना मोदी के खिलाफ विपक्ष का मोर्चा नहीं बन सकता है लेकिन अब जो हालात बनते दिख रहे हैं उससे लगता है कि विपक्ष के मोर्चे में कांग्रेस तो होगी मगर नेतृत्व नहीं कर सकती है.हां, यदि कांग्रेस 100 सीटें लोकसभा में ले आए तो बात कुछ और है क्‍योंकि पिछली बार जब ममता बनर्जी दिल्‍ली आई थीं तब वे सबसे मिली थी लेकिन सोनिया गांधी से नहीं मिली थीं. जब इस पर उनसे सवाल पूछा गयाा तो उन्‍होंने कहा कि हर बार, हर किसी से मिलना जरूरी नहीं है. तब यह संकेत माना गया था कि ममता बनर्जी विपक्ष के गठबंधन से कांग्रेस को बाहर भी रख सकती हैं क्‍योंकि तृणमूल कांग्रेस मानती है कि सड़क पर बीजेपी से हम लड़ रहे हैं कांग्रेस नहीं. हालांकि यह उस वक्‍त की बात है जब बंगाल में ताजा-ताजा विधानसभा चुनाव हुआ था और कांग्रेस और टीएमसी एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ी थीं

ममता बनर्जी के बाद तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर यानि के चंद्रेशखर राव ने भी विपक्ष को इकट्ठा करने की पहल की. वे भी मुबंई गए और सभी लोगों से मुलाकात की.विपक्षी एकता की बात तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन भी कर रहे हैं यानि अलग-अलग प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के तरफ से विपक्ष को एकजुट करने की कोशिशें जारी हैं. इसके पीछे वजह क्या है सबसे बड़ी वजह है कि तृणमूल कांग्रेस के पास बंगाल में सरकार है और दिल्ली में 22 सांसद जो कि अगले लोकसभा चुनाव में और बढ़ सकते हैं. डीएमके पास तमिलनाडु में सरकार है और 24 सांसद. शिवसेना के पास महाराष्‍ट्र में गठबंधन की सरकार है और 19 सांसद. चंशेखर राव के पास तेलंगाना में सरकार है और 9 सांसद. सांसद तो जगन मोहन रेड्डी के पास भी 22 है और आंध्र प्रदेश में सरकार भी मगर वे विपक्ष का हिस्सा बनने में कोई रुचि नहीं दिखाते. संसद में भी राज्य सभा में जब भी सरकार को सांसदों की जरूरत होती है तो वे सरकार के ही साथ रहते हैं. इन सबमें ममता बनर्जी का दावा सबसे मजबूत है क्योंकि उन्‍हें दिल्ली की राजनीति का भी अनुभव है. वे कई बार सांसद रहीं केंद्र में मंत्री रहीं जिसकी वजह से बाकी दलों के नेताओं से उनके संबंध अच्छे हैं.पहले कांग्रेस में थीं तो सोनिया गांधी से भी मधुर संबंध हैं.

अब इस सूची में एक और नाम जुड़ गया है वह है अरविंद केजरीवाल का.जिस ढंग से आम आदमी पार्टी (AAP)ने पंजाब में सफलता पाई है इसे राजनैतिक दलों का ‘सबसे सफल स्‍टार्ट अप’ कहा जाने लगा है क्योंकि राजनीति में दस साल से कम समय में दो राज्यों में सरकार बनाना नामुमकिन माना जाता है. बीएसपी के संस्थापक कांशी राम जिन्‍होंने बहुजन समाज पार्टी बनाकर यूपी की सत्ता हासिल की थे, कहा करते थे कि किसी भी राजनैतिक दल के लिए पहला चुनाव हारने के लिए, दूसरा हरवाने के लिए और तीसरा जीतने के लिए होता है. बीएसपी 1984 में बनी थी और अपने दम पर 2007 में मायावती यूपी जीत पाईं यानि 23 साल बाद. हालांकि थोड़े समय के लिए मायावती 1995, 1997 और 2002 में भी मुख्यमंत्री रहीं लेकिन आम आदमी पार्टी तो 2012 में बनी और आज उसके पास दो राज्य हैं.मगर 2024 में विपक्ष का चेहरा बनने के लिए अरविंद केजरीवाल को पहले ‘आप’ को राष्ट्रीय दल बनाना पडेगा.मगर उससे पहले क्षेत्रीय दल बनना जरूरी है.चार राज्यों में क्षेत्रीय दल बनने पर ‘आप’ राष्ट्रीय दल हो जाएगी. क्षेत्रीय दल बनने के कुछ नियम हैं…जैसे 4 राज्यों में 8 फीसदी वोट होना या 4 राज्यों की विधान सभा में 6 फीसदी वोट और 2 सीट या 4 विधान सभा में 3 सीट, वोट फीसदी मायने नहीं रखता.’आप’ के पास दिल्ली और पंजाब में अब सरकार है और गोवा में उसे 6.7 फीसदी वोट मिले हैं और 2 सीटें भी.यानि आप यदि गुजरात या हिमाचल के चुनाव में 2 सीट और 6 फीसदी वोट लाकर राष्ट्रीय दल बन जाती है तो अरविंद केजरीवाल का कद भी बढ़ेगा और दावेदारी भी.

कई ऐसे जानकार है जो मानते हैं कि केजरीवाल और मोदी में बहुत समानता है जैसे दोनों राष्ट्रवाद और धर्म को अपनी राजनीति में अहम जगह देते हैं. केजरीवाल की तिरंगा यात्रा ,बुजुर्गों को धार्मिक स्थलों की मुफ्त यात्रा करवाना, ‘जय माता दी’ और ‘भारत माता की नारे’ एक साथ लगाना, नए-नए प्रतीकों को ढूंढ़ना जैसे अंबेडकर हों या भगत सिंह. दोनों मुफ्त में जनता को राशन से लेकर बिजली-पानी देने में विश्वास रखते हैं. एक गुजरात मॉडल बेचा करते थे तो दूसरा दिल्ली मॉडल बेच रहा है.यानि मोदी का जबाब केजरीवाल हो सकते हैं क्योंकि भारत में अब दो ही तरह के वोट हैं एक मोदी को जिताने वाला और दूसरा मोदी को हराने वाला. दिक्कत ये है कि हराने वाला वोट अधिक है मगर वो बंटा हुआ है जो उसे इकट्ठा करने में सफल होगा वो मोदी को चुनौती दे सकता है और उस पल का इंतजार इस देश की एक बड़ी आबादी को है. देखते हैं वो घड़ी आती भी है या नहीं.